आज मैं बिजयनगर के कृषि मण्डी में राजस्थान सरकार द्वारा आयोजित कैम्प में पहुंचा। यहाँ मैं इंदिरा गाँधी स्मार्ट फ़ोन योजना के लिए अपने ही गांव की कुछ विधवा बुज़ुर्ग महिलाओं को ले कर पहुंचा था। मेरे पुरे दिन के संघर्ष का अनुमान आप इस बात से लगा सकते है कि सुबह साढ़े दस बजे हम पहुंचे और तीन युवा लड़के साथ होने के बावजूद भी हम सिर्फ़ तीन ही महिलाओं को स्मार्ट फ़ोन दिलवा सके। यह बहुत ही विचित्र आयोजन था, जिसके अनुभव के बाद मैं व्यक्तिगत तौर पर किसी भी महिला को अकेले जाने की सलाह बिल्कुल नहीं दूंगा। लेकिन विडम्बना देखिये कि लाभार्थियों की लिस्ट में ज़्यादातर लाचार, ग़रीब, असहाय विधवा महिलाएं है, जिनके पास शायद और कोई विकल्प भी नहीं है।

स्मार्ट फ़ोन से पहले स्मार्ट फ़ोन की पहेली

“आधार कार्ड और जन आधार कार्ड के साथ लाभार्थी एक स्मार्ट फ़ोन भी साथ ले कर आये” – यह जानकारी पहले क्यों साझा नहीं की गयी थी? सैंकड़ो वृद्ध-विधवा महिलाएं जो दूर-दूर से फ़ोन लेने आयी थी उन्हें परेशानी उठानी पड़ी क्योंकि उनके पास स्मार्ट फ़ोन नहीं था, जिसमें राजस्थान सरकार की जन आधार ई-वॉलेट एप्प डाउनलोड हो सके।

  • लाइन में लग कर पहले अपना आधार कार्ड दिखा कर छोटी पर्ची लो
  • फ़िर दूसरे काउंटर की लाइन में लग कर फार्म लो
  • उसके बाद तीसरे काउंटर की लाइन में लग कर फोटो लगवाओ और हस्ताक्षर या अंगूठा लगवाओ
    तीन लम्बी कतारों में मशक्त करने के बाद लाभार्थी (ज़्यादातर बुर्जुर्ग विधवा महिलाएं) को स्मार्ट फ़ोन लाने को कहा जाता है।

वो बुजुर्ग है,
विधवा है,
अकेली है,
शायद इसलिए वो लाभार्थी बनी।
फ़िर कैसे उम्मीद कर सकते है कि ऐसी किसी भी महिला के पास स्मार्ट फ़ोन होगा। अगर होना चाहिए, तो फ़िर आप उन्हें स्मार्ट फ़ोन बाँट क्यों रहे हो?

गांव से दूर, सुबह से भूखी घर से निकली बुजुर्ग महिलाओं को घंटो अलग-अलग कतारों में परेशान होने के बाद पता चलता है कि बिना स्मार्ट फ़ोन के उन्हें इस योजना का लाभ ही नहीं मिल सकता। बहुत सी महिलाओं को तो समझ ही नहीं आ रहा था कि करना क्या है? वालंटियर के नाम पर वहां कोई नहीं था, लोग एक दूसरे की जैसे-तैसे मदद करते हुए काम चला रहे थे। सरकारी कर्मचारियों का रवैया उतना ही मददगार था, जिसके लिए वो जाने जाते है। सुरक्षाकर्मी के नाम पर सिर्फ़ एक सिपाही लाठी ले कर इधर-उधर दौड़ रहा था। और तो और चुनाव सिर पर होते हुए भी आज वहां कोई हरदिल अजीज और जनता का सेवक युवा नेता नज़र नहीं आया।

Counters at Indira Gandhi Smart Phone Yojana

लम्बी कतारों में लम्बा इंतज़ार

जिन महिलाओं ने स्मार्ट फ़ोन का जुगाड़ कर भी लिया हो तो उनका संघर्ष वहां ख़तम नहीं होता। उन्हें फ़िर एक लाइन में लग कर जन आधार ई-वॉलेट एप्प डाउनलोड करवा कर खुद को रजिस्टर करवाना है। उसके बाद एक बड़े से हॉल में दाख़िल होने के लिए एक फार्म पर पटवारी के हस्ताक्षर करवाने है। अंदर आपको सिम के लिए लाइन में लग कर दस्तावेज़ जमा करवा कर फोटो खिंचवानी है। फ़िर पटवारी के हस्ताक्षर वाला फार्म मोबाइल कंपनी वाले काउंटर की लाइन में लग कर जमा करवाना है।

इतना सब करने के बाद आपको अब इंतज़ार करना है खाते में सरकार की ओर से 6800 की राशि आने का। जब तक इ-वॉलेट में राशि नहीं आएगी, प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ेगी। इसमें डेढ़ से दो घंटे का समय लगा, तब तक कड़कती धुप में लगाए हुए टेंट में आप आराम कर सकते है। पानी के लिए कैंपर की व्यवस्था है लेकिन शुरुआत में कैंपर से पानी कैसे पीना है इसकी कोई व्यवस्था नहीं थी।

राशि प्राप्त होते ही अंतिम पड़ाव में आपको दो लम्बी कतारों में और खड़ा रहना है। एक सिम प्राप्त करने के लिए और दूसरी मोबाइल फ़ोन के लिए। इधर सिम वाले बोल रहे थे कि पहले मोबाइल ले कर आओ और उधर मोबाइल वाले बोल रहे थे कि पहले सिम ले कर आओ। जैसे-तैसे इन सबसे गुजरने के बाद आपके हाथ लगती है VI या बीएसएनएल की सिम और पोको का एक स्मार्ट फ़ोन।

Long Cue of Elderly Widow Women at Indira Gandhi Smart Phone Yojana

लाभार्थी बना कर शोषण

ऊपर लिखी पूरी प्रक्रिया को ध्यान से पढ़ो, समझो और सोच कर बताओ कि जो अनपढ़, बुजुर्ग और विधवा महिला आज गलती से अकेली पहुंच गयी होगी तो उसका क्या हाल हुआ होगा? लाभार्थी के नाम पर इस तरह से कतारों में लगवाना और एक काउंटर से दूसरे काउंटर पर धक्के खिलवाना शोषण कहलाता है। सवाल अर्हता है कि आख़िर क्यों इतनी अव्यवस्था के साथ इस तरह के कैम्प में ये फ़ोन बांटे जा रहे है? और फ़ोन ही क्यों बांटे जा रहे है? जो राशि जन आधार इ-वॉलेट में आयी वो सीधा इन महिलाओं को दी जाती वो शायद उन्हें भी लाभार्थी होने की अनुभूति होती और वो पैसा उनके काम आता। इनमे से कितनी महिलाएं है जो स्मार्ट फ़ोन चलाना जानती है या सिख भी पायेगी? क्या उन्हें इन स्मार्ट फ़ोन में कोई दिलचस्पी भी है?

विधवा महिलाओं को लाभार्थी बनाया गया है तो उन बुजुर्ग पुरुषों का क्या जिनके आगे-पीछे कोई नहीं? क्या सरकार की उनके प्रति कोई ज़िम्मेदारी नहीं बनती? यदि किसी महिला ने विवाह नहीं किया हो और अब वो बुजुर्ग हो गयी हो तो क्या वो लाभ की हक़दार नहीं? किन्नर समाज का क्या? जिन्हे थर्ड जेंडर का दर्ज़ा दिया गया है, लेकिन उनसे शादी कोई करता नहीं तो वो विधवा होते नहीं। लेकिन ग़रीबी और बुढ़ापा तो उन्हें भी झेलना पड़ता है, तो क्या उन्हें सरकार से किसी भी प्रकार के लाभ की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए?

इंदिरा गाँधी स्मार्ट फ़ोन योजना: पहले स्मार्ट फ़ोन लाओ – फ़िर लाभ पाओ

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